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शब्दयोग सत्संग
१३ दिसंबर, २०१७
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
भोग में रोग का भय, ऊँचे कुल में उत्पन्न होने पर उससे नीचे गिरने का भय, धन रहने पर राजा का भय, मान में दीनता का भय, बल रहने पर शत्रु का भय, सौन्दर्य रहने पर वार्धक्य का भय, वेदान्त आदि शास्त्र के रहने पर वाद-विवाद का भय, विनय आदि गुणों के होने पर दुष्टों का भय, शरीर रहने पर यम का भय… कहने का तात्पर्य ये है कि इस संसार में सभी पदार्थ भय से व्याप्त हैं, केवल एकमात्र भगवान् शिवजी के चरण ही निर्भय का स्थान हैं।
~ वैराग्य शतकम्, श्लोक ३२
प्रसंग:
द्वैत क्या है?
अद्वैत क्या है?
द्वैत और अद्वैत में क्या अंतर है?
अद्वैत से द्वैत क्यों पैदा हो जाता है?
हम द्वैत में क्यों जीते हैं?
क्या अद्वैत में जीया जा सकता है?
'द्वैत के पीछे अद्वैत है,' ऐसा क्यों कहा जाता है?
द्वैतवादी और अद्वैतवादी में क्या समानता है?
संगीत: मिलिंद दाते